________________ ( 130) बने / वह मिथ्याडंबर को छोड़, साधुओं का सेवक बन, निर्दभतापूर्वक विचरण करे। श्री वीतरागप्रमु की ऐसी आज्ञा है कि, अपनी शक्ति के अनुसार धर्मकार्य करो। जो करो उसको निर्दभतापूर्वक करो। इस लिए उक्त श्लोक में साधुपन छोड़ कर श्रावक बनने की सलाह दी गई है। ____ यहाँ पाठकों को शंका होगी कि, शास्त्रों में हर जगह संसार को छोड़ने का उपदेश दिया गया है और यहाँ यह उल्टी बात-संसार में प्रवेश होने की बात कैसे कह दी गई ? इस कथन के रहस्य को विचारना चाहिए / जीव अनादि काल से कमकीचड़ से लिपटा हुआ है-मलिन हो रहा है। उस मलिनता को किसी अंशों में मिटाने के लिए वह साधु होता है / मगर साधु बनने पर भी यदि मलिनता बढ़ने का कारण देखा जाय तो फिर उस कारण को मिटा देना चाहिए / इसी लिए कहा गया है कि-" युक्ता सुश्राद्धता तस्य न तु दम्मेन जीवनम् / " इस प्रकार के गंभीर आशयवाला वाक्य और उपदेश, वीतराग के शासन विना अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलेगा। संप्तार के अंदर शिखावाले, रुण्ड मुण्ड, जटाधारी, नग्न आदि अनेक प्रकार के साधु देखे जाते हैं, परन्तु उनमें व्रतादि की