________________ / 134) .: कोहो पीई पणासेई माणो विणय नासणो। माया मित्ताणि नासेई लोहो सव्वविणासणो // भावार्थ-क्रोध प्रेम को नष्ट करता है। मान विनय को नष्ट करता है। माया मित्रता को नष्ट करती है और लोभ सब का ( सब गुणों का ) नाश कर देता है / , लोम के विषय में जितना कहा जाय उतना थोड़ा है। लोभ महा पिशाच है। सारे दुर्गुणों का यह सरदार है। लोम के वशवर्ती मनुष्यों में सारे दुर्गुण रहते हैं / कहावत है कि: सब अवगुण को गुण लोभ भयो, तब और अवगुण भये न भये // सारांश यह है कि जहाँ लोभ होता है वहाँ सारे दुर्गुण आखड़े होते हैं; और लोभ के नाश होते ही सारे उसी के साथ नष्ट हो जाते है / लोभाधीन मनुष्य अन्याय में प्रवृत्त होता है। जहाँ लोभ है वहाँ अन्याय है ही। इस सिद्धान्त की व्याप्ति में कहीं भी विरोध मालुप नहीं होगा। तत्ववेत्ता मनुष्योंने लोभ पिशाच को नीच बताया है / कहा है कि: आकरः सर्वदोषाणां, गुणग्रसनराक्षसः / कंदो व्यसनवल्लीनां लोभः सर्वार्थबाधकः // भावार्थ-लोभ सब दोषों की खानि है; गुणों के खाजाने