________________ भावार्थ-काटपूर्वक पाइमुण्ययोग अर्थात् संधि आदि, उस कर के छल से विधासु पुरुषों के घात काने से एवं अर्थ के लोम से शना लोग जगत् को ठगते हैं, अतएव वे राना नहीं हैं, किन्तु सचमुच रंक ही है। ___अब मुनिवेष को धारण कर के लोग कैसे दुनिया को टगते हैं ? इस का विचार किया जाता है। कहा है कि ये लुब्धचित्ता विषयादिभोगे. बहिर्विरागा हृदि बद्धरागाः // ते दाम्भिका वेषभृताश्च धूर्ता ___ मनांसि लोकस्य तु रञ्जयन्ति // - भावार्थ-जिन का हृदय विषयादि भोगों में लुब्ध हो रहा है जो अन्तरंग से रागी हैं और दिखान वैरागी हैं; वे कपटी है वेपाडंबी धूर्त हैं। वे तो केवल लोगों के चित्त को प्रसन्न करने ही में लगे रहते हैं। . पाठकों को शंका होगी कि, लोग क्या मूर्ख हैं जो ऐसे ; धत लोगों की बातों पर विश्वास करते हैं ! इस के उत्तर में हम इतना ही कहना चाहते हैं कि ऐसा ही होता है। कहा . मुग्धश्च लोकोऽपि हि यत्र मा निवेशितस्तत्र रतिं करोति /