________________ इस का एक कारण और भी है / जब जैनमुनि तटस्य वृत्ति से जगत् के जीवों को वास्तविक उपदेश देने "लगे तब नामधारी ब्राह्मणों की ठगी प्रकाश में आने लगी और उन की आमदनी में धक्का पहुँचने लगा, तब उन्हों ने जैनधर्म पर चार अनुचित आक्षेप-कलंक-लगा कर जीवों को सत्योपदेश से वंचित कर दिया / प्रथम कलंक यह कि-जैन लोग नास्तिक हैं। दूसग कलंक यह लगाया कि-जैनी मलिन हैं। तीसरा कलंक यह लगाया कि-जैनियों के देव नंगे हैं। चोथा यह कि-जैनी ब्राह्मणों को अपने मंदिर में मारते हैं। __पाठक, विचार कीजिए कि जो जैन गृहस्थ और जैनसाधु सदैव वैराग्य वृत्ति रखते हैं; और जप, तप, संयम, ज्ञान, ध्यान आदि की की हजारों प्रकार की क्रियाएँ करते हैं उन जैनियों को नास्तिक बतानेवाला स्वयं कैसा धर्मात्मा हो सकता है ? . दूसरा आक्षेप है मलिनता का / मगर यह मी ठीक नहीं है / क्यों कि जैन लोग अशुद्ध आहार व्यवहार नहीं करते / भोजन करते हैं शोधके साथ / जल व्यवहार में “लाते हैं अच्छी तरह से छान कर और भगवान का पूजनपाठ