________________ ( 121 ) अब जुआरियों के प्रपंच का विचार किया जायगा / कहा है किप्रतार्य कूटशपथैः कृत्वा कूटकपर्दिकाम् / धनवन्तः प्रतार्यन्ते दुरोदरपरायणैः // . भावार्थ-झूठी शपथ से और नकली सिक्कों के रुपयों से जुआरी मनुष्य धनवानों को ठगते हैं। जुआरी मनुष्य प्रायः सब व्यसनों में पूरा होता है / कई वार वह किसी का खून कर डालने में भी आगा पीछा नहीं करता है / जुआरी जुए में जब अपने पास का सब रुपया हार जाता है तब वह फिरसे रुपया पाने के लिए अनेक प्रकार के प्रपंच रचता है / माता, पिता, भाई, बहिन, पुत्र, पुत्री आदि सब को ठगने का प्रयत्न करता है। किसी के लिए कुछ भी विचार नहीं करता / कई कई वार तो वह ऐसे ऐसे अनर्थ कर बैठता है कि जिसके सुनने ही से कलेना काँप जाता है / जुएने नलराजा की और पांडवों की कैसी दुर्दशा की थी ? इस का विचार कर के बुद्धिमान मनुष्यों को जूआ का त्याग करना चाहिए। ___ माया प्रपंच के कारण परस्पर में संबंध होने पर भी लोग एक दूसरे को-खास कुटुंबियों तक को-ठगते हैं। कहा