________________ आरक्ताभिर्हावभावलीलागतिविलोकनैः / कामिनो रञ्जयन्तीभिर्वेश्याभिर्वञ्च्यते जगत् // भावार्थ-हावभाव की लीला करनेवाली, चलने के ढंग. वाली, कटाक्षपात करनेवाली; कामीजनों के मन को मुग्ध करनेवाली और प्रेम करने का ढौंग दिखानेवाली वेश्याएँ दुनिया को ठगती हैं। वेश्या सदैव निन्द्य है / धन और प्राण दोनों का नाश करनेवाली है / हजारों मनुष्य वेश्याओं के आधीन हो कर नष्ट भ्रष्ट हो चुके हैं / ऐसे हजारों मनुष्यों के उदाहरण हमारे समक्ष हैं / मनुष्य जानते हुए भी मोह महामल के आधीन हो कर, वेश्या के अनुगामी बनते हैं और अपने आप को बरबाद करते हैं। पूर्व देश में-कलकत्ता बनारस आदि प्रान्त में यह एक अनोखी बात है कि, जिस गृहस्थ के घर में एक दो रखेल स्त्रियाँ नहीं होती हैं वह सद्गृहस्थ नहीं कहलाता है। कई स्थानों में रखेल स्त्री के छोकरों को भी संपत्ति में से हिस्सा दिया जाता है / मगर जिस प्रकार से पुरुष इस प्रकार स्वच्छंदता. का वर्ताव करते हैं, उस तरह स्त्रियाँ नहीं करती हैं / तो भी पुरुषों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि, कामः का प्राबल्य पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में आठ गुना ज्यादा होता