________________ ( 197) रक्षा करने जितना भी सामर्थ्य नहीं है। उन को कौए उठा ले जाते हैं और बुरी तरह से मारते हैं। इस प्रकार यदि कोई नाम मात्र के लिए ही ब्राह्मण हो, तो उस बिचारे को अन्न, वस्त्र दे कर सुखी करना चाहिए। मगर उस को सुपात्र समझ कर उस के लिए धनमाल लुटाना किसी भी तरह से उचित नहीं है। गुरु तत्वाधिकार में इस पर और विशेष रूप से विवेचन किया जायगा। अब व्यापारी वर्ग कैसा प्रपंच करते है इस पर विचार किया जायगा। कहा है कि कूटाः कूटतुलामानाशुक्रियासातियोगतः / / वञ्चयन्ते जनं मुग्धं मायामानो वणिग्ननाः // * भावार्थ-मायाचारी पाखंडी बनिए लोग खोटे तोलों और खोटे मापों से, शीघ्र क्रिया से सातियोग से यानी लघु लावी क्रिया से मूर्ख लोगों को ठगते हैं। बनियों की ठगी दुनिया में प्रसिद्ध है / चंचल द्रव्य के लिए, कई वार वे निश्चल धर्म को बेचने में भी आगा पीछा नहीं करते हैं / जो उन पर विश्वाप्त रखता है उस को तो वे पूरी तरह से ठगते हैं / नीति और धर्म दोनों को वे जलाञ्जली दे देते हैं। तो भी हम देखते है कि उनमें से कइयों को पेट भर खाने के लिए भी नहीं मिलता है !