________________ ( 115 ) साथ ही उन में ब्राह्मणों के गुणों का वर्णन करदिया गया है। जैसेः ब्राह्मणा ब्रह्मचर्येण यथा शिल्पेन शिल्पिकः / अन्यथा नाममात्रं स्यादिन्द्रगोपस्तु कीटवत् // भावार्थ-जैसे शिल्पि विद्या के होने पर ही हम उसको शिल्पी बताते हैं वैसे ही जो ब्रह्मचर्य पालता है वही ब्रह्मचारी कहलाने योग्य है / अन्यथा तो इन्द्रगोप नामा कीड़े की भाँति वह नाम मात्र का कीड़ा है। - गुण के विना कोई गुणी नहीं कहा जासकता / यदि नाम मात्रही से कोई वैसा हो जाय तो फिर मनुष्य का नाम 'ईश्वर' भी है / इसलिए मनुष्य भी ईश्वर की भाँति क्यों नहीं पूजा जाता है ! इसी भाँति ब्राह्मण के योग्य जिस में गुण न हो वह ब्राह्मण कुल में जन्मने से और ब्राह्मण नाम धारण करने से एज्य नहीं हो सकता है। उसको ब्राह्मण कहना भी अनुचित है। मनुनी के वाक्य 'जन्मना जायते शूद्रः।। (जन्म से सब ही छद्र होते हैं ) से भी यही सिद्ध होता है कि, जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होसकता है। तात्पर्य यह है कि, मब जगह गुणका मान होता है, जन्म का नहीं / इसलिए मान उसी ब्राह्मण को मिलना चाहिए कि जिस