________________ ( 194) यजमान के सामने अपनी दरिद्रता प्रकाशित कर, स्वोदर पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रपंच रचते हैं और लोगों को ठगते हैं। - हमें बिचारे ऐसे ब्राह्मणों पर दया आती है। वे अपनी कृतियों से लोगों के कर्जदार होते हैं; और कर्जदारी चुकाने के लिए बारबार जन्म और मरण के. कष्ट भोगेंगे / इसी माँति ऐसे ब्राह्मणों को दान देनेवालों को भी अपना कर्जा वसूल करने के लिए जन्म, जरा, मृत्युपूर्ण इस संपार में जन्म लेना पडेगा / जन्म है, वहाँ मृत्यु भी अवश्यं भावी है / पाराशर स्मृति का निम्न लिखित श्लोक सदा दाता के ध्यान में रखने योग्य है / यतिने काश्चनं दत्वा ताम्बूलं ब्रह्मचारिणे / चौरेभ्योऽप्यमयं दत्वा स दाता नरकं व्रजेत् // " मावार्थ-जो यति को-साधु को-धन देता है; ब्रह्मचारी को ताम्बूल देता है; और चौरों को अभय देता है वह दाता नरक में जाता है। इस श्लोक से स्पष्ट है कि जो जिस चीज के योग्य हो वही बीज देना चाहिए। उसके विपरीत देने से दाता नरक में बहुतसे हिन्दु शास्त्रों में यह बात बताई गई है कि, "ब्राह्मणों की पूजा करना चाहिए, क्योंकि ब्राह्मण सुपात्र हैं। "