________________ ( 193) को मेट दे और भारत में सब प्रकार से आनंद का प्रसार होने दे / अस्तु। हमने, जैनों पर जो कलंक लगाये गये हैं उन का उत्तर दिया है। पाठकों से अनुरोध है कि वे उन अर्द्धविदग्ध लोगों से दूर रहें कि जो सत्यवक्ताओं पर कलंक लगा कर उनके उपदेश से लोगों को वंचित रखते हैं। और सत्य मार्ग दिखाने वालों के सहवास में आवे। अब अल्प मात्र मायावी और धूर्त ब्राह्मणों का स्वरूप समझाने के लिए श्लोक दिया जाता है: तिलकैर्मुद्रया मंत्रैः क्षामतादर्शनेन च / अन्तः शून्या बहिः सारा वश्चयन्ति द्विजा जनम् // भावार्थ-तिलक और मुद्रासे और दुर्वलता के दौंगसे; एन्य अन्तःकरणवाले मगर ऊपरसे भले होने का ढोंग बताने वाले ब्राह्मण मनुष्यों को उगते हैं। अहिंसादि दश प्रकार के सत्य धर्म को छोड़, आडंबर में भानंद माननेवाले नामधारी ब्राह्मण; वास्तव में ब्राह्मण शब्द को लज्जित करनेवाले पुरुष-लंबे तिलक लगा, हाथ में दर्भासन ले, बगल में पुस्तक दवा भोले लोगों के सामने शान्त मुद्रा धारण करते हैं; अशुद्ध वेद मंत्र उच्चारण कर कल्पित अर्थ बताते हैं;