________________ भी वे मली प्रकार से स्नान कर चंदन का लेप कर के / ऐसा व्यवहार करने वाले जैन को यदि मलिन कहें तो फिर दुनिया में शुद्ध कौन है ? वास्तव में तो मलिन वही होता है जो धर्म के बहाने जीव हिंसादि अकार्य कराता है। लोगों को नरक में ढकेलता है और आप भी उन के साथ गिरता है। . जैनों के देव नंगे हैं। यह आक्षेप भी उन का निर्मूल ही है। क्यों कि यदि कोई जैन श्वेतांबर मूर्तियों को देखेगा तो उस को ज्ञात हो जायगा कि वे नंगी नहीं होती है। उन की कटि पर कच्छ होता है / यद्यपि दिगंबर आम्नाय की मूर्तियां नग्न होती है। परन्तु जैनेतर मूर्तियों से व बहुत ही ऊंचे दरजे की होती है / शंकर और विष्णु की मूर्ति को यदि देखोगे तो विदित होगा कि उन में किसी भी प्रकार का सम्मान दर्शक चिन्ह नहीं है / इस मे कुछ अत्युक्ति नहीं है। __अब हम इस बात का विशेष विवेचन नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने से एक तो निन्दा में उतरना होता है, जिससे ग्रंथ लिखने के उद्देश में वाधा पहुँचती है; दूसरे विषयान्तर होने का भी मय है। चौथा कलंक यह है कि, जैन अपने मन्दिरों में ब्राह्मणों का बलिदान करते हैं / इस का उत्तर जनरव स्वयं दे रही है / सब जानते हैं कि जैन एक कीडी को मारने में भी महा पाप