________________ (108) "उन के नाम ये हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय-चोरी नहीं करना, त्याग-निस्पृहता, और मैथुनवर्जन-ब्रह्मचर्य / खेद है कि-उन में से कितने ही साधुओं ने अपने धर्मानुसार आचार विचार रखना छोड़ दिया है; मधुकर वृत्ति का त्याग कर दिया हैं; और येन केन प्रकारेण अपने उदर की पूर्ति कर साधुजाति पर कलंक लगाया है और लगाते हैं। सत्यमार्ग के प्रकाशक, मोक्षमार्ग के साधक, कर्मशत्रु के बाधक, शत्रु और मित्र दोनों पर समान भ.व रखनेवाले, संसारसागर से भव्य जीवों को तारनेवाले, रागद्वेष से मुक्त, कंचन और कामिनी-धन और स्त्री के त्यागी और वैरागी आदि अनेक गुणधारी माधुओं पर वे आक्षेप करते हैं। सत्याचार की निन्दा करते हैं और भोले लोगों को ठगते फिरते हैं। यद्यपि अन्त में सत्य बात प्रकट होती है; तथापि थोड़ी देर के लिए तो संसार अवश्य भ्रम में पड़ जाता है / कइयों ने तो वास्तविक मार्ग की निंदा करने के लिए कई तरह के श्लोक जोड़ डाले हैं। उदाहरणार्थ हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेज्जैनमंदिरम् / न वदेद्यावनी भाषां प्राणैः कण्ठगतैरपि / भावार्थ-हाथी मारने को आया हो तो भी जैतमन्दिर में ( अपनी जान बचाने के लिए भी ) न जाना चाहिए। और