________________ (105) नरसिंहपुराण में 60 वें अध्याय के 263 वे पृष्ठ पर लिखा है कि ततः प्रभृति पुत्रादौ सुखलोभादि वर्जयेत् / दद्याच भूमावुदकं सर्वभूताभयङ्करम् / / भावार्थ-उस के बाद-मनुष्य वानप्रस्थाश्रम को छोड़ कर सत्यासी बनता है तब से-यावज्जीवन-मरण पर्यंत-पुत्रादि के सुख का और लोभ का त्याग करें; पृथ्वी पर जलांजुली छोड़े और सर्व प्राणियों को अप्रय करने वाली हो ऐसी प्रतिज्ञा करें / " दीक्षा से मरण पयन्त पुत्र, पुत्री, धन, दौरत आदि किसी पर किसी भी तरह का राग भाव न रक्खे और न किसी जीव को दुःख पहुंचाने वाली प्रवृत्ति ही करे / यानी इस प्रक र का व्यवहार करे जिस से किसी जीव को पीड़ा न पहुंचे / इस वाक्य से हिंसा प्रवृत्ति का निषेध किया गया है। और भी अन्यान्य पुराणों और स्मृतियों में लिखा है। . न हिंस्यात् सर्व भूतानि नानृतं वा वदेत कचित् / / नाहितं नाप्रियं ब्रूयान्न स्तेनः स्यात् कथंचन // 1 // , तृणं वा यदि वा शाकं मृदं वा जलमेव च / .. .: परस्यापहरन् जन्तुर्नरकं प्रतिपद्यते // 2 //