________________ ( 94 ) - मुझ को लज्जा मालूम हुई / अस्तु / भावी कभी अन्यथा होनेवाला नहीं है। " तत्पश्चात----- इदानीमपि गत्वा तान् वंदिष्येऽहं महामुनीन् / चिन्तयित्वेति स महासत्त्वः पादमुदक्षिपत् // लतावल्लीव त्रुटितेष्वभितो घातिकर्मसु // तस्मिन्नेव पदे ज्ञानमुत्पेदे तस्य केवलम् // भावार्थ- अब भी जा कर मैं उन महामुनियों को वंदना करूंगा।' ऐसा सोच कर महा सत्वशाली बाहुबली मुनिने जैसे ही चलने के लिए वहाँ से पैर उठाया, वैसे ही चारों तरफ लिपटे हुए लता तंतुओं की भाँति उन के घाति कर्म भी नष्ट हो गये / और उन को केवलज्ञान हो गया। उक्त दृष्टान्त से विदित होगा कि बाहुबली के समान सत्वधारी-शक्तिशाली-महामुनि के तपः तेज को भी मानने दबा दिया और उन्हें केवलज्ञान नहीं पैदा होने दिया, तब पामर मनुष्यों के धर्मध्यान को नष्ट कर दे इस में तो आश्चर्य ही किस बात का है ? __और इसी लिए मोक्षाभिलाषी मनुष्यों को मान नहीं करना “चाहिए / यदि प्रमाद से, या अज्ञान के उदय से मान आ भी