________________ ( 97 ) करती है वैसे ही कदाग्रह रूरी मिट्टी भी स्वच्छ आत्मा को कर्मरन से मलिन बना देती है / घतादि पदार्थों में भस्म-राख गिर जाने से जैसे वे व्यर्थ हो जाते हैं, इसी भाँति, मनुष्य के हृदय में परमार्थ वृत्ति रूपी जो घृत होता है उस को मान रूपी राख गिर का, व्यर्थ कर देता है। जैसे ज्वरादि रोग निस शरीर में होते हैं, उस शरीरी को मिष्टान्न, घृत, दुग्व आदि पदार्थ रुचिकर नहीं होते है; वैसे ही निप का हृदय कदाग्रह रूपी रोग से बीमार हो जाता है उस मनुष्य को पत्य पदार्थ रूपी मिठाई, तत्व रुचि रूपी दुध और विवेक रूपी घृत अच्छे नहीं लगत हैं / शोक रूपी शंकू-काँटा-निस के शरीर में घुस जाता है उस के मन वचन और काय म्लान हो जाते हैं, इसा तरह वदाग्रह रूपी शोक निसके हृदय में प्रविष्ट होता है. उसके हृदय में देव, गुरु और धर्म इस त्रिपुटि के लिए ग्लानि रहा करता है / अर्थात् सुगुरु, सुदेव और सुधर्म को वह नहीं पहिचान सकता है। __ इस प्रकार उक्त विशेषणों सहित कदाग्रह है / मुमुक्षु जीवोंने अभिमान को छोड़ देना चाहिए / जहाँ अभिमान का नाश हो जाता है वहाँ कदाग्रह प्रविष्ट होने का साहस नहीं कर सकता है / क्यों कि कारण विना कार्य की उत्पत्ति नहीं होती है।