________________ जाय तो बाहुबली महाराज के इस उदाहरण का स्मरण कर मान का त्याग करना चाहिए और आत्मानंदी बनना चाहिए / ___एकान्त में बैठ कर घडी भर आत्म-साक्षी से विचार किया जाय तो यह बात हमें, अनुभवसिद्ध मालूम होगी कि, मान का फल मनुष्य को तत्काल ही मिल जाता है / जिस् वस्तु का मनुष्य गर्व करता है, उसी वस्तु में, थोड़ी समय बाद, मनुष्य को, विकार उत्पन्न हुआ मालूम होता है / संभव है कि, किसी के पुण्य का तीव्र उदय हो, उसके कारण उसे अभिमान का फल न भी मिले / मगर यह तो निश्चित है कि, भवान्तर में उसे अपने कृत-मान का फल अवश्यमेव भोगना पड़ेगा। यह कह दें तो भी अत्युक्ति न होगी कि, अभिमान मिध्यात्म का पिता है-मिथ्यात्व को उत्पन्न करनेवाला है। क्यों कि मान धर्मात्मा मनुष्यों के मन रूपी मंदिर में घुसकर अपनी कदाग्रह रूपी दुर्गंधी फैलाता है और सद्भावना रूपी सुगंधीसे नष्ट कर देता है-उससे-कदाग्रहसे-मनुष्य की तत्वानवेषण बुद्धि-- समान दृष्टि से विवेकपूर्वक पदार्थ के स्वरूप को देखने की बुद्धि नष्ट हो जाती है / इस से वह वस्तु का स्वरूप सिद्ध करने में जहाँ उसकी मति होती है वहीं युक्ति को खींच ले जाता है। युक्ति जिस ओर बुद्धि को ले जाना चाहती है-युक्ति से जिस प्रकार वस्तु का स्वरूप सिद्ध होता है-वैसे वह नहीं होने देता।