________________ (89) और अपने केशों का लोच कर लिया। बाहुबली द्रव्य और भावसे पग्रिह के त्यागी बन गये / कहा है कि इत्युदित्वा महासत्त्वः सोऽप्रणीः शीघ्रकारिणाम् / तेनैव मुष्टिना मूळ उद्दधे तृणवत् कचान् // भावार्थ-इस प्रकार सतोगुण के उदित होने पर, शीघ्र कार्य करनेवालों में सदैव आगे रहनेवाले उसने-बाहुबलीने-उसी मुष्टिसे घार की तरह अपने शिरसे बालों को उखाड़ डाला / ____ अपने भाई को त्यागी हुए देख भरत महाराज की इस प्रकार स्थिति हुई। भरतस्तं तथा दृष्ट्वा विचार्य स्वकुकर्म च / बभूव न्यञ्चितग्रीवो विविक्षुरिव मेदिनीम् // 1 // शान्तं रसं मूर्त्तमिव भ्रातरं प्रणनाम सः। नत्रनै श्रुभिः कोष्णैः कोपशेषमिवोत्सृजन् // 2 // सुनन्दानन्दनमुनेर्गुणस्तवनपूर्षिकाम् / स्वनिन्दामित्यथाकार्षीत् स्वापवादगदौषधीम् // 3 // भावार्थ--- भरत महाराज, उनको-बाहुबली को-वैसी स्थिति में देख-साधु बने देख-अपना कुकर्म विचार नीचा मुँह करके खड़े हो गये / नीचा मुख करके खड़े हुए वे ऐसे मालूम होते थे मानो वे पृथ्वी में घुस जाना चाहते है। .