________________ परन्तु निजात्मा का उस से कुछ: मला होनेवाला नहीं है। परमार्थ उस से कुछ सधनेवाला नहीं है। इतना ही क्यों, यदि उत्तम कुल पाप-बंधन का हेतु हो; तो उस को अपना ही घातः करनेवाला शस्त्र समझना चाहिए / क्यों कि यदि उस को उच्च कुल नहीं मिला होता तो वह पाप कर्मों का बंध करनेवाले विचार नहीं करता; प्रत्युत वह न्यूनता के ही विचार करता है। यह सदा याद रखना चाहिए कि अच्छी चीज भी अच्छे भाववालों ही को लाभदायक होती है। ऐश्वर्य मद के लिए कहा है: श्रुत्वा त्रिभुवनैश्वर्यसंपदं वज्रधारिणः / पुरग्रामधनादीनामैश्वर्य कीदृशो मदः / गुणोज्ज्वलादपि भ्रश्येद् दोषवन्तमपि श्रयेत् / कुशीलस्त्रीवदैश्वर्यं न मदाय न विवेकिनाम् // भावार्थ-त्रिभुवन का ऐश्वर्य इन्द्र की संपदा है / उन के ऐश्वर्य की बात सुन कर मी नगर, ग्राम, धन, धान्यादि का मद करना सोहता है क्या ? नहीं सोहता। दुराचारिणी स्त्री की तरह, जो ऐश्वर्य, गुणवान पुरुष का ( आश्रय ले कर ) त्याग भी कर देता है और दुराचारी पुरुष का भी आश्रय ले लेता है। ऐसे ऐश्वर्य का विवेकी पुरुषों को कब मद होता है?