________________ (83) उन्हों ने कभी, लेश मात्र भी, गर्व नहीं किया / उन के बनाये हुए ग्रंथ इस के प्रमाण हैं / पामर मनुष्य इस प्रकार के ग्रंथ तो नहीं बना सकता / केवल उन आचार्यों के बनाये हुए पाँच पचीस ग्रंथ वाँच कर, गर्व करने लग जाता है / इस से वह प्रामाणिक लोगों की दृष्टि में मूर्ख जंचता है और कीर्ति के बदले अपकीर्ति पाता है / वह उन्नत होने के बजाय, अवनत होता है; इस लिए शास्त्रकारों ने उस को 'निज शरीर को खाने वाला' जो विशेषण दिया है वह बहुत ही ठीक दिया है। . श्री गणधर महाराजों की चमत्कार शक्ति के सामने, उसक की-पाँच पचीस ग्रंथ पढ़नेवाले की-शक्ति तुच्छ है / उन की सूर्य रूपी शक्ति के सामने हम उस को जुग्नू भी नहीं बता सकते हैं। विचार करने की बात है कि, जिन महानुभावों ने केवल त्रिपदी के आधार पर द्वादशांगी की रचना की-श्री अर्हतदेव के आशय को पूर्णतया उस में संकलित कर दिया; जिन की धारणा-स्मरण-शक्ति और ग्रंथ-रचना शक्ति देवों को भी आश्चर्य में डालती है / ऐसे गणधरों ने भी जब कभी किसी जगह मदांश प्रकट नहीं किया; मद को ज़हर समझ कर लेश मात्र भी मद नहीं किया; तब बेचारे पामर जीव की शाक्ति, भक्ति और व्यक्ति फिर किस गिनती में है ? ____ इस लिए हे चेतन ! श्रुत मदादि कोई भी मद न कर और निर्मद होकर निःसीम सुख का भागी बन /