________________ (80) विकसति यदि पद्म पर्वताग्रे शिलायां; .. तदपि न चलतीयं माविनी कर्मरेखा / / मावार्थ-यदि सूर्य पश्चिम दिशा में उगने लगे; मेरु चलित हो जाय; अग्नि शीतल हो जाय; और कमल पर्वत की चोटी पर शिला के ऊपर खिल जाय तो भी जो भावी है; जो कर्म रेखाः है; जो होनहार है वह कभी नहीं टलता है। कर्म की प्रधानता को अन्य धर्मावलंबी भी स्वीकार करते हैं / देखो। जिस समय वसिष्ठऋषिने रामचंद्रनी को गद्दी पर बिठाने का मुहूर्त बताया था, उसी समय उन्हें वन में जाना पड़ा था / इसी लिए कहा है किः कर्मणो हि प्रधानत्वं किं कुर्वन्ति शुभा अहाः ? वशिष्ठदत्तलग्नोऽपि रामः प्रव्रजितो वने // x उस समय रामचंद्रजीने क्या विचार किया था ! यचिन्तिं तदिह दूरतरं प्रयाति; ___ यश्चेतसा न गणितं तदिहाभ्युपैति / प्रातर्भवामि वसुधाधिपचक्रवर्ती सोहं बजामि विपिने जटिलस्तपस्वी // x इस का भावार्थ इसी लोक के ऊपर आ चुका है।