________________ महाबलोऽपि रोगाथैरबलः क्रियते क्षणात् / इत्यनित्यवले पुंसां युक्तो बलमदो न हि // बळवन्तोऽपि जरसि मृत्यौ कर्मफलान्तरे / अबलाश्चत्ततो हन्त ! तेषां बलमदो मुधा / / भावार्थ-महाबलवान पुरुष भी रोगादि के कारण क्षण मात्र में निर्बल हो जाता है। ऐसे अनित्य बल का मनुष्यों को मद नहीं करना चाहिए। बलवान पुरुष भी जब बुढापे के सामने, मौत के सामने और कर्मों के अन्यान्य फलों के सामने निर्बल हो जाते हैं तब उन का बल मद करना वृथा है / ___ प्रायः देखा जाता है कि-आत्मबल विकसित करके उस "का कोई मद नहीं करता। मद करते हैं लोग शरीर का ।भाइयो! सोचो, जब कि बल का आश्रय रूप जो शरीर है, वह भी सर्वया नाशवान है, तब उसमें से उत्पन्न होनेवाला बल तो नाशवान होवेहीगा। इसलिए ऐसे नाश होनेवाले बल का मद करना बुद्धिमानों को नहीं सोहता। बल यदि बुढ़ापे का, मृत्यु का और अन्य कर्मों का नाश करता हो तो उस का मद करना उचित भी हो सकता है, परन्तु यह तो उल्टा उनसे,-जरा, मृत्यु और कर्म से नष्ट हो जाता है। बुढ़ापेने बड़े बड़े योद्धाओं को जर्नरित किया है / बलवान