________________ सोचो कि इन्द्र की ऋद्धि के सामने मनुष्य की ऋद्धि किस हिसाब में है ? जब यदि किसी गिनती में नहीं है-तुच्छ है तब फिर ऐसे ऐश्वर्य का मद करना क्या व्यर्थ नहीं है ? समय आने पर इन्द्र भी अपनी सम्पत्ति को छोड़ जाता है तो फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है ? इस लिए अनित्य लक्ष्मी के लिए नित्य. आत्मा को दुखी करना, बुद्धिमानों के लिए अनुचित है। ऐश्वर्य किसी को गुणवान समझकर, उस के पास नहीं जाता है, इसी तरह किसी को दुर्गुणी समझ कर उस से दूर नहीं मागता है। उस के आने और जाने का आधार मात्र पूर्व पुण्य है। पुण्य क्षय होने से वह भी क्षय हो जाता है और पुण्य की बढ़ती में वह मी.. बढ़ता जाता है। तात्पर्य यह है कि जो पुण्याला होते हैं उन्हीं को ऐश्वर्य मिलता है। मगर पुण्य को भी अन्त में छोड़ देना पड़ता है। त्याज्य होने पर भी मोक्ष में जाने योग्य बनने के लिए, पुण्य परंपरा से, कारण है इसी लिए, शास्त्रकारोंने पवित्र पुण्य का आश्रय ग्रहण किया है। अत: पुण्य उपार्जन करने का भी प्रयत्न करना चाहिए; परन्तु ऐश्वर्य का मद तो कदापि नहीं करना चाहिए। अब बल मद को छोड़ देने का आदेश देते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि