________________ (69) जातिलाभकुलैश्वर्यवकरूपतपः श्रुतैः। कुर्वन् मदं पुनस्तानि हीनानि लमते जनः // भावार्थ-मद-मान-भाठ हैं-जातिमद, लाममद, कुलमद, ऐश्वर्यमद, बलमद, रूपमद, तपमद और ज्ञानमद / जो कोई व्यक्ति आठों में से कोईसा मद करता है-इनमें से किसी बात का अभिमान करता है-उस को आगामी जन्म में, वह वस्तु उतनी ही कम मिलती है जितना कि वह उस का मद करता है। मद और मान एक ही बात है। किसी को जाति का अभिमान होता है, किसी को, लाम का अभिमान होता है-वह समझता हैं कि, मेरे समान किसी को भी लाभ नहीं मिला है। मैं बहुत बड़े भाग्य वाला हूँ; आदि / किसी को कुल का अभिमान होता है / वह समझता है कि, मेरा कुल ही सब से ऊँचा है। अन्य कुल सब मुझसे नीचे हैं / किसी को वल का अभिमान होता है। किसी को रूप.का गर्व होता है। वह समझता है कि मेरे समान सुंदर आकृति अथवा कान्ति किसी की भी नहीं है। किसी को तप का अभिमान होता है। वह समझता है कि, मैं तपस्वी हूँ। मेरे समान तपस्या करने वाला इस जगत् में दूसरा कोई नहीं है / और किसी को ज्ञान का अभिमान होता है। वह समझता है कि, मेरे समान किस को शास्त्रों का