________________ भावार्थ-सारी इन्द्रियों को स्थिर कर देने वाले, बढते हुए : क्रोध रूपी महा सर्प को क्षमा रूपी सर्प पकड़ने के मंत्र से जीत लेना चाहिए। ___ सर्प जिस मनुष्य को काटता है उस की सारी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं / उस का वेग आगे बढ़ता जाता है, यानी ज़हर चढ़ता जाता है। समय पर यदि किसी जाङ्गलिक-सर्प को उतारने वाले-का योग नहीं मिलता है तो मनुष्य मर भी जाता है। इसी भाँति जिस के शरीर में क्रोध प्रविष्ट होता है उस की सारी इन्द्रियाँ शिथिल कर देता है। शरीर को तपा देता हैरक्त को सुखा देता है और ज्ञान मुला देता है। उसी समय यदि क्षमा रूपी मंत्र की प्राप्ति हो जाती है, तो क्रोध चांडाल नष्ट हो जाता है / यदि क्षमा मंत्र नहीं मिलता है, तो धर्म रूपी प्राण निकल जाते हैं, इसी लिए हे भव्य जीवो! क्रोध से दूर रहो ! दूर रहो !