________________ (64) HARHAARAAAAB ( मान का स्वरूप। UUUUUUUUUU अपने पुत्रों को क्रोध नहीं करने का उपदेश देने के बाद प्रभु ने इस भाँति मान का उपदेश देना प्रारंभ कियाः हे जीवो ! मान न करो / मान करने से विनय नष्ट होता हैं / विनय के अभाव में विद्या प्राप्त नहीं की जा सकती है। विद्या विना मनुष्य में विवेक नहीं आता। विवेक के अभाव मनुष्य को उस तत्व ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है, जो मोक्ष का कारण है। इस लिए सारे अनर्थों के मूल मान रूपी अजगर का त्याग करने की आवश्यकता होने से, मान के दोषों का, मान के स्वरूप को और कैसे विचारों से मान का नाश किया जा सकता है उन का क्रमशः विवेचन किया जायगा।। विनयश्रुतशीलानां त्रिवर्गस्य च घातकः / विवेकलोचनं लुम्पन् मानोऽन्धकरणो नृणाम् // भावार्थ-मान, विनय, शास्त्र, सदाचार और त्रिवर्ग का धर्म, अर्थ और काम का-घात करने वाला है, और विवेक चक्षुओं को नष्ट कर मनुष्य को अन्धा बनाने वाला है। यह मान आठ प्रकार का बताया जाता है। यथा