________________ (66) पर समान भाव रखता है। अन्यथा वास्तव में देखा जाय तो मृत्यु के समान दुनिया में दूसरा कोई भय नहीं है। वास्तव में कोप किस पर करना चाहिए सर्वपुरुषार्थचौरे कोपे कोपो न चेत्तव / धिक्त्वां स्वल्पापराधेऽपि परे कोपपरायणम् // मावार्थ-हे मनुष्य ! तेरे सारे पुरुषार्थों को चुरा ले जाने वाला क्रोध है; यदि उस पर तू क्रोध न कर तेरा थोडासा अपराध करने वाले मनुष्य पर तू क्रोध करता है तो तुझे धिक्कार है! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों के नाश करने वाले क्रोध पर क्रोध करना चाहिए। क्रोध के कारण ही यह जीव अनादि काल से. दुर्गति-भाजन होता आया है। इस लिए जैसे बडा गुनाह करने वाले को देश निकाला दिया जाता है इसी भाँति इस कोप को भी शरीर रूपी देश से निकाल देना चाहिए; क्रोध को देश निकाले का उचित दंड देना चाहिए / इसरे मनुष्य पर नाराज हो कर, क्रोध अपराधी को उत्तेजन देना सर्वथा अनुचित है। अब एक श्लोक दे कर क्रोध का विषय समाप्त किया नायगा। सर्वेन्द्रियग्लानिकरं प्रसर्पन्तं ततः सुधीः / क्षमया जाङ्गलिकया जयेत् कोपमहोरगम् //