________________ (64) भारी भूल की / मैं अपना क्षमा धर्म छोड़ कर उल्टे मार्ग चला और इसी लिए मुझ को मार भी खाना पड़ा। ____इस से समझना चाहिए कि-क्रोध साधु को असाधु, ज्ञानी को अज्ञानी और सज्जन को दुर्जन बना देता है / इस लिए क्रोध नहीं करना चाहिए। और भी कहा है: अरुन्तुदैर्वचःशत्रैस्तुद्यमानो विचिन्तयेत् / चेत्तथ्यमेतत् कः कोपोऽय मिथ्योन्मत्तभाषितम् // पहुँचाने वाले दूमरे मनुष्य के वचन सुन कर, मनुष्य को सोचना चाहिए कि, यदि इस का कहना सत्य है तो फिर इस पर क्रोध किस लिए करना चाहिए ? और यदि इस का कहना मिथ्या है तो फिर उसको उन्मत्तभाषी समझ कर उस पर क्रोध करना व्यर्थ है। ___ अपने में दोष हो और कोई मनुष्य यदि निंदा करता हो, तो उस समय हमें सोचना चाहिए कि-मुझ में दोष है इस लिए वह मेरी निन्दा कर रहा है / अतः मुझ को उस पर क्रोध करना उचित नहीं है / यदि अपने में दोप न हो और कोई निन्दा करे तो विचारना चाहिए कि यह कहता है वे दुषण तो मेरे में हैं ही नहीं फिर मुझ को दुःख क्यों मानना चाहिए ? दृषित ही दुःखी होते हैं। निर्दोष तो आनंद ही मानते हैं /