________________ (60) के न होने पर कर्म चले जाते हैं / इस प्रकार की अन्योन्य व्याप्ति दृष्टिगोचर होती है / पुरुष का परम पुरुषार्थ-सब से ज्यादा हिम्मत का काम-यही है कि, कुछ भी कर के वह क्रोध को रोके। सोचने की बात है कि उपेक्ष्य लोष्टक्षेप्तारं लोष्टं दशति मण्डलः / मृगारिः शरमुत्प्रेक्ष्य शरक्षेप्तारमृच्छति // भावार्थ-कुत्ते का स्वभाव है कि, वह पत्थर फेंकने वाले को नहीं; पत्थर को काटने दौड़ता है / मगर सिंह, तीर को काटने न दौड़ कर तीर चलाने वाले पर आक्रमण करता है। ____ मनुष्य को सिंह की वृत्ति धारण करना चाहिए, कुत्ते की नहीं / जैसे सिंह मूल कारण पर आक्रमण करता है इसी भाँति भव्य पुरुषों को भी मूल कारणभूत अपने कर्मों पर दृष्टि डालना चाहिए / दूसरे के लिए सोचना चाहिए कि यह बिचारा मेरी बुराई करने की कोशिश करता है, इस का कारण यह स्वयं नहीं है। कारण हैं मेरे कर्म / यह तो मेरे कमों की प्रेरणा से मेरे अनिष्ट का प्रयत्न करने में प्रवृत्त हुआ है। और यह सोच कर मनुष्य को चाहिए कि वह शम, दम आदि धर्मों द्वारा कर्म शत्रु का नाश करे / यदि ऐसा नहीं करेगा तो वह श्वान के •समान समझा जायगा। मनुष्य को सिंह बनना चाहिए, श्वान नहीं।