________________ (49) भावार्थ--कोई मनुष्य सत्पुरुषों के अंदर गुणवान गिना जाता हो परन्तु यदि कषाय वाला हो, तो वह इच्छने योग्य नहीं है; जैसे कि दूधपाक भी यदि विषपिश्रित है तो वह त्याज्य होता है // 1 // जैसे प्रज्वलित दावानल तत्काल ही वन के वृक्षों को जला कर, राख कर देता है, वैसे ही क्रोध, मान, माया और लोम इन चार कषायों के वश में जो जीव हो जाता है वह भी अपने जन्म भर के इकट्ठे किये हुए तप को नष्ट कर देता है // 2 // ___जैसे नील वाले कपड़े में कसूबे का रंग नहीं चढ़ता है, उसी तरह कषायोंद्वारा जिस मनुष्य की आत्मा कलुषित हो जाती है, उसके अन्तःकरण में धर्म बड़ी कठिनता से स्थित रह सकता ___चांडाल से स्पर्श करनेवाला मनुष्य जैसे स्वर्ण के सोने के पानी से भी शुद्ध नहीं होता है वैसे ही कषाययुक्त जीव तप करने से भी शुद्ध नहीं होता है // 4 // ___ इस प्रकार सामान्यतः कषायों का स्वरूप बताया गया। अब क्रमशः क्रोध, मान, माया और लोम के स्वरूप का वर्णन किया जायगा। क्रोध का स्वरूप। हरत्येकदिननैव तेजः पाण्मासिकं ज्वरः / क्रोधः पुनः क्षणेनाऽपि पूर्वकोट्याऽजितं तपः //