________________ (48) भावार्थ-हे सौम्य पुरुषो ! कष्ट से पाने योग्य और सर्वांग सुंदर मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर, स्वात्मसुख की इच्छा रखने वाले पुरुषों को चाहिए कि वे सर्व प्रकार से धर्म की आराधना करने का प्रयत्न करें / मनुष्य जन्म मिलने पर यह कार्य करना चाहिए। दुष्कर्मबन्धनोपाया अन्तरायाः सुखश्रियाम् / तपसामामया हेयाः कषायाः प्रथमं बुधैः // ___मावार्थ----दुष्ट कर्म बंधन के हेतु, सुखरूपी लक्ष्मी में अन्तराय और तपस्याओं के अंदर रोग के समान कषायों का पंडित पुरुषों को सबसे पहिले त्याग करना चाहिए / और भी कहा हैसकषायो नरः सत्सु गुणवानपि नार्थ्यते। यतो न विषपंपृक्तं परमान्नमपीष्यते // 1 // यथा प्रज्वलितोऽरण्यं दवाग्निर्दहति द्रुतम् / कषायवशगो जन्तुस्तथा जन्मानितं तपः // 2 // धर्मश्चित्ते दुराधेयः कषायकलुषात्मनाम् / रङ्गो यथा कुसुम्मस्य नीलीवासितवाससि // 3 // यथाऽन्त्यनं स्पृशन् स्वर्णवारिणाऽपि न शुध्यति / सकषायस्तथा जन्तुस्तपसाऽपि न शुद्धभाक् // 4 //