________________ (54) गई हो उस को सरलता से नष्ट कर देना बुद्धिमत्ता नहीं है। और इसीलिए क्रोध करना बहुत ज्यादा हानि करनेवाला बताया गया है। फिर भी कहा है: प्रवर्धमानः क्रोधोऽयं किमकार्य करोति न ? | भाविनी द्वारिका द्वैपायनक्रोधानले समित् // भावार्थ-बढ़ता हुआ कोष कौन सा अकार्य नहीं करता है ? अर्थात् सब कुछ करता है। द्वैपायन की क्रोधाग्नि में द्वारिका नगरी काष्ट रूपी होगी-काष्ट की भाँति भस्म हो जायगी। (इस श्लोक में ' भाविनी शब्द से भविष्य काल का प्रयोग किया गया है / इस का कारण यह है कि-द्वैपायन ऋषि के द्वारा द्वारिका पुरी नेमिनाथ भगवान के समय में भस्म हुई थी; और देशना श्री आदीश्वर भगवान ने-ऋषभदेव भगवान ने दी थी / जो नेमिनाथ भगवान के बहुत पहिले हो चुके हैं। इसी लिए भविष्य काल का प्रयोग किया गया है।) उक्त श्लोक में वर्णित द्वैपायन ऋषि की घटना इस तरह हुई थी कि-" यादवों ने निष्कारण द्वैपायन ऋषि को सता कर उन के क्रोध को जगा दिया। इस से-क्रोधांध हो कर उन्हों ने नियाणा किया कि-यदि मेरे तप का कुछ फल हो तो मैं अगले भव में इस नगर को जलाने वाला होऊँ / ऋषि मर कर, तप के प्रभाव से अग्निकुमार नामा देव हुए। फिर उन्हों ने ऋषि