________________ (52) भावार्थ / १-क्रोध जीवों को संताप-दुःख देने वाला है; क्रोध वैर का कारण है; क्रोध दुर्गति का मार्ग है; और शान्ति रूपी सुख के कपाट बंध करने के लिए अर्गला भी क्रोध ही है। २-अग्नि की भाँति क्रोध भी उत्पन्न होकर पहिले अपने ही को भस्म करता है। पश्चात् दूसरों को जलावे भी और न भी जलावे / ( अभिप्राय यह है कि, अग्नि की भाँति क्रोध से भी सदैव भव्य पुरुषों को बचते रहना चाहिए।) ३-आठ वर्ष कम पूर्व कोटि वर्षों द्वारा जो तप संचय किया जाता है उसी तप को क्रोध रूपी अग्नि क्षण वार में जला कर मस्म कर देती है। ४-बहुत बड़े पुण्य के समूह से संचित किये हुए शांति रूपी दुग्ध में, जब क्रोध रूपी विष का मिश्रण हो जाता है। तब वह दुग्ध मी पीने योग्य नहीं रहता है / (अर्थात्-क्रोध के उत्पन्न होने से मनुष्य की शान्ति नष्ट हो जाती है।) ५-चढता हुआ क्रोध रूपी धूआँ विचित्र गुण धारी चारित्र रूपी चित्र को अत्यंत कालिमा पूर्ण बना देता है ( मनुष्य का जीवन यह घर है। उच्च चारित्र सुंदर चित्र है। यह चित्र घर में टँगा हुआ है। घर में, शरीर में, क्रोध रूपी आग जल कर