________________ (55) वाले भव में जो नियाणा-नियम-किया था-उस को पूरा किया; उन्हों ने द्वारका को जला दिया। सारांश इस उदाहरण के देने का यह है कि-द्वैपायन के समान ऋषि ने भी जब क्रोध कर के अपने तप का फल हार दिया और संसार भ्रमण को बढा लिया तब सामान्य मनुष्यों की तो बात ही क्या है ? इस लिये बुद्धिमान मनुष्यों को सदैक क्रोध से डरते रहना चाहिए / यदि कोई मनुष्य यह समझता हो कि, क्रोध किये विना काम नहीं चल सकता है तो उन की यह समझ भूल भरी है। कहा है कि क्रुध्यतः कार्यसिद्धिर्या न सा क्रोधनिबन्धना / जन्मान्तरार्जितो स्विकर्मणः खलु तत्फलम् / / भावार्थ-क्रोध करने वाले का कार्य सिद्ध हो जाता है, तो यह नहीं समझना चाहिए कि उस की कार्य-सिद्धि का कारण क्रोध है / बल्के यह समझना चाहिए कि, उस ने जन्मान्तर में अतिशय माहात्म्य वाला कर्म किया है उसी का वह फल है। स्वस्य लोकद्वयोच्छित्त्यै, नाशाय स्व-परार्ययोः / धिगहो ! दधति क्रोधं शरीरेषु शरीरिणः // भावार्थ-अहो ! ऐसे प्राणियों को धिकार है कि जो