________________ (56) अपना इस भव का और परभव का उच्छेद करने के लिए और अपना व पराये का हित नाश करने के लिए क्रोध करते हैं। . सोचने की बात है कि दुनिया में कौन ऐसा मूर्ख होगा ? जो .सर्वथा दुःख देने वाली और भयंकर परिणाम लाने वाली चीज को अपने पास रखेगा ? / खेद तो इस बात का है कि लोग जानते हुए भी जड़ के समान हो कर-क्रोध का त्याग नहीं करते हैं। अहो ! वास्तव में देखा जाय तो क्रोध सारे अनर्थों का मूल है। क्रोधान्धाः पश्य निघ्नन्ति पितरं मातरं गुरुम् / सुहृदं सोदरं दारानात्मानमपि निघृणाः // भावार्थ-देखो ! क्रोधान्ध मनुष्य पिता, माता, गुरु, मित्र, भाई और स्त्री को भी मार देता है / इतना ही नहीं वह अपनी आत्मा को भी मार डालता है।। मनुष्य जब क्रोध के वश में हो जाता है, तब उसको विवेक ज्ञान बिलकुल नहीं रहता है / वह परमोपकारी अपने माता पितादि को भी मारने का प्रयत्न करता है और कई वार तो उन्हें वह मार भी डालता है। कई वार ऐसे मनुष्य आत्मघात मी कर लेते हैं / मगर मनुष्य के हृदयमें से जब क्रोध चला जाता है / तब उसको पश्चात्ताप होने लगता है। आत्मघात करनेवाला भी अपने आप को मारने की क्रिया तो कर लेता है