________________ तपोभिर्भशमुत्कृष्टरावर्जितसुरौ मुनी / / करट-घरटौ कोपात् प्रयातो नरकावनीम् // भावार्थ--बहुत तप करके जिन्होंने देवताओं को वशमें किया था, वेही करट और धरट नामा मुनि कोप करके नरक में गये। सोचने की बात है कि, जब कोप, मुनियों के तप संयमादि धर्मकार्यों को भी नष्ट करके उन्हें नरक में ले जाता है तब दूसरे मनुष्यों की तो बात ही क्या है ? इसी बात को पुष्ट करने के लिए और भी कहा है कि जीवोपतापकः क्रोधः, क्रोधो वैरस्य कारणम् / दुर्गतेर्वर्तनी क्रोधः, क्रोधः शमसुखार्गला // 1 // उत्पद्यमानः प्रथमं दहत्येव स्वमाश्रयम् / क्रोधः कृशानुवत् पश्चादन्यं दहति वा नवा // 2 // अर्जितं पूर्वकोट्या यद्वषैरष्टभिरूनया। तपस्तत् तत्क्षणादेव दहति क्रोधपावकः // 3 // शमरूपं पयः प्राज्यपुण्यसंभारसंश्चितम् / अमर्षविषसंपर्कादसेव्यं तरक्षणाद् भवेत् // 4 // चारित्रचित्ररचनां विचित्रगुणधारिणीम् / समुत्सर्पन क्रोधघूमो श्यामली कुरुतेतराम् // 5 //