________________ सूर्य के समान तेजस्वी, और स्वर्ण के समान स्वच्छ स्वभाव वाले होते हैं / स्वर्ण जैसे, ताप, ताडना आदि कष्ट सह कर भी अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता है। वैसे ही भगवान कष्ट परंपरा प्राप्त होने पर भी अपने स्वभाव का परित्याग नहीं करते हैं। वसुंधरा की भाँति सर्वसह-सब कुछ सहन करने वाले, आदि अनेक विशेषण विशिष्ट श्री भगवान, तपस्यादि करते हुए छद्मस्थ-अवस्था को बिताते हैं / भगवान जो तपस्या करते हैं वह सब 'निर्जल'-चउविहार होती है। उदाहरणार्थ-श्री महावीर भगवान ने बारह बरस से भी कुछ ज्यादा समय तक घोर तपस्या की थी। उन में केवल 349 पारणे उन्हों ने किये थे। इसी प्रकार उक्त समय में निद्रा भी सब मिलाकर केवल एक रात्रि प्रमाण ही ली थी। भगवानने सब निम्न लिखित तपस्याएँ की थी। र छ मासी-छ: महीने की; 1 पाँच दिवस न्यून छ मासी-पाँच महीने और पचीस दिन की; 9 चौमासी-चार महीन की; 2 त्रिमासी-तीन महीने की; 2 ढाई मासी-ढाई महीने की; 6 द्विमासी-दो महीने की; 2 डेढ मासी-डेढ महीने की; 12 मासक्षपण-एक एक महीने की; 72 पन्द्रह उपवास की; 2 दिन भद्र प्रतिमा; 4 दिन महाभद्र प्रतिमा; 10 दिन सर्वतोभद्र प्रतिमा; 229 छठ-दो दो दिन के उपवास की%B 12 अठम-तीन तीन दिन के उपवास की।