________________ ( 37 ) प्रकार से कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरुषों को ज्ञानियों ने पूर्वोक्त हितशिक्षा दी है; लाभ की बात कही है। विषयवासना रूपी विषवृक्ष की शक्ति बहुत प्रबल है। विषय की वह छाया तीनों कोक की सीमा पर्यन्त फेली हुई है। उस छाया के प्रताप से, सद्भाग्य से ही कोई पुरुष बच सकता है। उस ने नामधारी त्यागियों को भी भोगी बना दिया है, और भोगियों को तो सर्वथा नष्ट भ्रष्ट ही कर डाला है। विशेष क्या कहें ? उसने देव, दानव, हरि, ब्रह्मा आदि देवों के पास से भी दासों का सा आचरण कराया है / विषय रूपी विषवृक्ष की इस छाया में से, सर्वया अलग रहने के लिए, परंपरा से महापुरुष हितोपदेश देते आये हैं। जो लोग महापुरुषों के बचनों पर विश्वास न कर, स्वछंदी बन जाते हैं और मनःकल्पित विचारश्रेणी में गुथ कर, पूर्वोक्त विषय रूपी विषवृक्ष की छाया तले विश्राम लेने के लिए आकर्षित हो जाते हैं, वे क्षणवार ही में अपनी आत्मिक सत्ता को खो बैठते हैं; मोह मदिराका पान कर मूञ्छित हो जाते हैं। उनका कृत्याकृत्य संबंधी विवेक नष्ट हो जाता है; और वे मन में आता है वैसे ही बोलने अथवा करने लग जाते हैं। वास्तव में देखा जाय तो विषय, विष-ज़हर-से भी ज्यादा चलवान है। क्योंकि विष तो इस भव में मृत्यु का देनेवाला होता है। परन्तु विषय-विष तो कई भवों तक मरण के अनिष्ट