________________ दूसरा प्रश्न हो सकता है कि-तिर्यंच, जाति और जन्म वैर को कैसे छोड़ देते होंगे ? इसका उत्तर में स्वयं न दे कर योगशास्त्रादि-योगाभ्यास के ग्रंथ-देखने की सूचना करता हूँ। योगियों का प्रभाव अवाच्य और अगम्य होता है / हम भरपबुद्धि लोगों के ध्यान में तो उसकी रूपरेखा भी नहीं आ सकती है। सब दर्शन-धर्म वाले इस बात को स्वीकार करते हैं। आज कल के विज्ञानशास्त्री ( Scientist ) भी जब वनस्पतियों में अपूर्व शक्तियाँ हैं ऐसा विज्ञान के द्वारा, सप्रमाण सिद्ध करते हैं। तब जो तप, जप, समाधि आदि गुणों के द्वारा आत्मशक्तियों को विकसित करते हैं; उन योगियों का प्रभाव अचिन्त्य हो; तो इसमें आश्चर्य की कौनसी बात है ? हाँ इतना जरूर है कि, जो कार्य सृष्टि के विरुद्ध हैं उनमें बुद्धिमान सम्मत नहीं होता है। जैसे.. अपौरुषेय वचन; क्योंकि वचन और अपौरुषेय-पुरुष का नहीं ये दोनों बातें विरुद्ध हैं; कुंवारी कन्या के पुत्र का जन्म होना; मस्तक में से ध्वनि निकलना; पर्वत की पुत्री; समुद्र को पीना और फिर से पेशाब द्वारा उसको वापिस निकाल देना; कान से पुत्र का जन्म होना; जाँघ से पुत्र का जन्म होना; मछली से मनुष्य का जन्म होना; कुशा से