________________ (36) मनुष्य का जन्म होना; चार हाथवाला पुरुष और दश शिरवाला मनुष्य आदि बातें ऐसी हैं कि, जिन का अनुभव के साथ विचार किया जाय तो अघटित मालूम होती हैं। इस प्रकार की एक भी बात तीर्थकर महाराज ने प्ररूपित नहीं की है। भगवान केवल जगत-जीवों के हित के लिए और अपनी भाषा वर्गणा के पुद्गलों का नाश करने के लिए अग्लान भाव से देशना देते हैं। उस देशना का स्वरूप कुछ यहाँ बताया जाता है / का स्वरूप / " हे भव्य जीवो ! इस संसार के क्लेशों से यदि तुम घबरा गये हो; जन्म, जरा और मृत्यु के दुःख से तुम्हारा मन यदि उद्विग्न हो गया हो; और इस संसार रूपी वन को छोड़ कर, मुक्ति मंदिर में जाने की तुम्हारी यदि आन्तरिक इच्छा होतो विषय रूपी विषवृक्ष के नीचे एक क्षण वार के लिए भी विश्राम न करना / ____ विदेश जाने वाले तरुण-अनुभवहीन युवक को जैसे एक हित की बात कही जाय कि-"तू अमुक स्थान में मत जाना और यदि भूल से चला ही जाय तो सावधान रहना " / इसी