________________ (34) इस प्रकार हिसाब लगाने से ज्ञात होता है कि, उन्होंने कुल 349 पारणे किये थे। पूर्वोक्त घोर तपस्या के द्वारा, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घाति कर्मों का नाश कर के, लोकालोक का प्रकाशक केवलज्ञान प्राप्त किया था। इस प्रकार केवलज्ञान प्राप्त होने पर श्री प्रमु, उक्त समवसरण के अंदर बैठ कर, देशना देते हैं। यह देशना अर्धमागधी भाषा में होती है / समवसरण में देव, मनुष्य और तिर्यंच की सब मिला कर, बारह परिषदे होती हैं। सारे जीव परस्पर वैर भाव को छोड़ कर शान्ति के साथ प्रमु के वचनामृत का पान करते हैं। यहाँ शंका हो सकती है कि, तिर्यंच उसको कैसे समझते होंगे ? उसके उत्तर में इतना ही कहना काफी होगा कि, भगवान के वचनों में ऐसी शक्ति होती है कि, जिस से सब जीव भली प्रकार से अपनी अपनी भाषा में-समझ सकते हैं। वर्तमान में उद्यम शील देशों में, उद्यम शील मनुष्य तिर्यंचों की भाषा भी समझने लगे हैं। तिर्यचों को समझाने के लिए तो आजकल के भारतीय लोग भी सशक्त हैं। इस लिए यदि थोड़ा सा विचार करेंगे तो विदित हो जायगा कि इससे श्रेष्ठ काल के अन्दर तीर्थंकरों के समान लोकोत्तर पुरुष यदि तिर्यंचों को अपना कथन समझा सकते थे तो उस में कोई आश्चर्य की बात नहीं थी / इसलिए यह शंका निर्मूल है।