________________ (42) भी सम्यक्त्व मिलना दुर्लभ है, और सम्यक्त्व मिलने पर भी सदाचार की प्राप्ति होना अतीव दुर्लभ है। इस भाँति संक्षेप में उत्तरोत्तर मोक्ष के साधन बताये हैं / हे भव्यो ! तुम्हें बहुत कुछ मिल चुका है। अब थोड़ा ही मिलना अवशेष रहा है। इसलिए मेरे बताये हुए मार्ग में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूपी समाधि को स्वीकार करो; इन्हीं में रत होने का उद्यम करो / सत्पुरुषों के लिए अनार्य-अनुचित-संगति को छोड़ कर निज श्रेय का-अपने कल्याण का-साधन करना ही अच्छा है। उनको विषय कषायादि दुर्गुणों में कभी भी नहीं गिरना चाहिए। ____ बहुत बड़ी पुण्यराशि के कारण मनुष्य जन्म रूपी कल्पवृक्ष प्राप्त हुआ है। सत्य, संतोष, परोपकार, इन्द्रियजय, दान, शील, तप, भाव, समभाव, विवेक और विनयादि गुण मनुष्यजन्म रूपी कल्पवृक्ष के पुष्प हैं / इन की रक्षा करो। इन से स्वर्ग, मोक्षादि उत्तम फलों की प्राप्ति होगी। ___ संसार में लाखों ही नहीं बल्के करोडों पदार्थ कर्मबंधन के हेतु रूप हैं। मगर जर, जमीन और जोरु; यानी द्रव्य, भूमि और स्त्री ये तीन मुख्यतया क्लेश के घर हैं। इस बात को छोटे बड़े सब अच्छी तरह जानते हैं / इन तीन चीजों में से भी स्त्री क्लेश का सब से विशेष बलवान कारण है। क्योंकि मनुष्य को जब स्त्री मिलती है, तब उसे जमीन की भी-घरद्वार की भी