________________ फल देता है / चौरासी लाख जीवयोनियों में-जीवों के मिन्न 2 उत्पत्ति स्थानों में-अनादिकाल से भ्रमण करानेवाली भी वस्तुतः यह विषयवासना ही है। ___इस बात को सब दर्शनों-धर्मों वाले स्वीकार करते हैं किसंसार में मनुष्ययोनिपर्याय सर्वोत्तम है। कारण यह है कि, मनुष्यपर्याय के सिवा अन्य किसी पर्याय से मुक्ति नहीं मिलती है / हाँ, कई ऐसी भी योनियाँ हैं जिन से देवगति मिल सकती है। विषय सेवन की इच्छा सामान्यतया सब योनियों के जीवों को होती है। कई योनियाँ ऐसी हैं जिन में पूरी तरह से विषय सेवन होता है और कई ऐसी हैं जिन में चेष्टा मात्र ही होती है / मगर विषय होता जरूर है; इसका अभाव किसी भी योनि में नहीं होता / तो भी मनुष्ययोनि में एक बात की विशेषता है / वह यह है कि यदि मनुष्य को तत्त्वज्ञान हो जाता है, तो वह विषय वासना से रहित हो सकता है / और इसी हेतु से मनुष्ययोनि सर्वोत्कृष्ट बताई गई है। अन्यथा विषय सेवन तो मनुष्ययोनि में भी अनादि काल से चला ही आ रहा है / और इसी कारण से परमपूज्य वाचकमुख्य श्रीउमास्वातिनी महाराज कहते हैं किः" भवकोटिभिरसुलभं मानुष्यकं प्राप्य कः प्रमादो मे है। न च गतमायुर्भूयः प्रत्येत्यपि देवराजस्य " || ... “अर्थ-करोड़ों जन्मों से भी अत्यन्त दुर्लभ मनुष्यजन्म