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મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧ और उन ही प्रदेशो में निश्चय से ठहरता है जिनमें आत्मा व्यापक है व जो आत्मा के निज प्रदेश हैं तथापि ज्ञान में एसी स्वच्छता है कि जैसे दर्पण की स्वच्छता में दर्पण के विषयभूत पदार्थ दर्पण में साफ साफ झलकते हैं इसीसे दर्पण को आदर्श व पदार्थों का झलकानेवाला कहते हैं वैसे सम्पूर्ण जगत के पदार्थ अपने तीन कालवर्ती पर्यायों के साथ में ज्ञान में एक साथ प्रतिबिम्बित होते हैं इसीसे ज्ञानको सर्वगत या सर्वव्यापी कहते हैं जिस तरह ज्ञानको सर्वगत कहते हैं उसी तरह यह भी कह सकते हैं कि सर्व पदार्थ भी ज्ञानमें झलकते है अर्थात् सर्व पदार्थ ज्ञान में समा गए।
निश्चय नय से ज्ञान आत्मा के प्रदेशों को छोडकर ज्ञेय पदार्थ के पास न जाता है और न ज्ञेय पदार्थ अपने अपने पदार्थों को छोडकर ज्ञान में आते हैं कोई किसी में जाता आता नहीं तथापि व्यवहार नय से जब ज्ञान ज्ञेय का ज्ञेय ज्ञायक सम्बन्ध है तब यह कहना कुछ दोष युक्त नहीं है कि जब सर्व ज्ञेयो के आकार ज्ञानमें प्रतिबिम्बित होते हैं तब जैसे ज्ञान ज्ञेयो में फैलने के कारण सर्वगत या सर्वव्यापक हैं वैसे पदार्थ भी ज्ञान में प्राप्तगत या व्याप्त हैं। दोनों का निमित्त – नैमितिक सम्बन्ध है। ज्ञान और ज्ञेय दोनों की सत्ता होने पर यह स्वत: सिद्ध है कि ज्ञान उनके आकारों को ग्रहण करता है और ज्ञेय अपने आकारों को ज्ञान को देते हैं। तथा पदार्थ ज्ञान में तिष्ठते हैं ऐसा कहना किसी भी तरह अनुचित नहीं है।
[गाथा-३१, पृष्ठ-१२५ ] [ ] भावार्थ- इस तरह आत्मा पदार्थ और उसके ज्ञानादि गुण अपने ही प्रदेशों में
सदा निश्चल रहते है। निश्चय से केवलज्ञानी भगवान आप स्वभाव ही का भोग करते हैं, आप सुख गुण का स्वाद लेते हैं, उनको परद्रव्यों के देखने जानने की कोई अभिलाषा नहीं होती है तथापि उनके दर्शन ज्ञान की ऐसी अपूर्व शक्ति है कि सम्पूर्ण ज्ञेय पदार्थ अपनी अनंत पर्यायो के साथ उस ज्ञानदर्शन में प्रतिबिम्बित होते हैं। इसी से व्यवहार में ऐसा कहते हैं कि केवलज्ञानी सर्व को पूर्णपने देखते जानतें हैं।
[गाथा - ३२, पृष्ठ-१३०-१३१] [A] अन्वय सहित विशेषार्थ- तैसे ही ज्ञानकी क्रिया में उपाध्याय प्रकाश, पुस्तक
आदि बाहरी उपकरण भिन्न हैं तो हो! इसमें कोई दोष नहीं है परन्तु ज्ञान शक्ति भिन्न नहीं है वह आत्मा से अभिन्न है। यदि ऐसा मानोगे कि भिन्न ज्ञान से आत्मा ज्ञानी हो जाता है तब दूसरे के ज्ञान से अर्थात् भिन्न ज्ञान से सर्व ही कुंभ खंभो आदि जड पदार्थों भी ज्ञानी हो जायेंगे सो ऐसा होता नहीं। ज्ञान आप ही परिणमन करता है अर्थात् जब भिन्न ज्ञान से आत्मा ज्ञानी नहीं होता है तब जैसे घट की उत्पत्तिमें मिट्टीका पिंड स्वयं उपादान कारण से परिणमन करता है वैसे पदार्थों के जानने में ज्ञान स्वयं उपादान