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મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧
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कारण से परिणमन करता है तथा व्यवहार नय से सर्व ही ज्ञेय पदार्थ ज्ञान में स्थित हैं अर्थात् जैसे दर्पण में प्रतिबिम्ब पडता है तैसे ज्ञानाकार से ज्ञान में झलकतें हैं ऐसा अभिप्राय है । [ गाथा-३५, पृष्ठ-१४१ ]
[A] भावार्थ- इससे यह बात निश्चित है कि आत्मा और ज्ञानका तादात्म्य सम्बन्ध है जो कभी भी छूटनेवाला नहीं है। ज्ञानी आत्मा अपनी ही उपादान शक्ति से अपने ज्ञान रुप परिणमन करता है । और उसी ज्ञान परिणति से अपनी निर्मलता के कारण सर्व ज्ञेय पदार्थों को जान लेता है और वे पदार्थ भी अपनी शक्ति से ही ज्ञान में झलकते हैं जिसको हम व्यवहार नय से कहते हैं कि सर्व पदार्थ ज्ञान में समा गये । [ गाथा-३५, पृष्ठ-१४३ ]
[A] उत्थानिका- आगे कहते हैं कि आत्मा के वर्तमान ज्ञान में अतीत और अनागत पर्यायें वर्तमान के समान दिखती हैं।
विशेषार्थ- उन प्रसिद्ध शुद्ध जीव द्रव्यों की व अन्य द्रव्यों की वे पूर्वोक्त सर्व सद्भूत और असद्भूत अर्थात् वर्तमान और आगामी तथा भविष्यकाल की पर्यायें निश्चय से या स्पष्ट रुपसे केवलज्ञानमें विशेष करके अर्थात् अपने अपने प्रदेश, काल, आकार आदि भेदों के साथ संकर व्यतिकर दोष के विना वर्तमान पर्यायों के समान वर्तती हैं अर्थात् प्रतिभासती हैं या स्फुरायमान होती है। भाव यह है कि जैसे छद्मस्थ अल्प ज्ञानी मति श्रुतज्ञानी पुरुष के भी अंतरंग में मन से विचारते हुए पदार्थोंकी भूत और भविष्य पर्यायें प्रगट होती हैं अथवा जैसे चित्रमई भींत पर बाहुबली भरत आदि के भूतकाल के रुप तथा श्रेणिक तीर्थंकर आदि भावि काल के रुप वर्तमान के समान प्रत्यक्ष रुपसे दिखाइ पडते असे चित्र भींत के समान केवलज्ञान में भूत और भावि अवस्थाएं भी एक साथ प्रत्यक्ष रुपसे दिखाई पडती हैं इसमें कोई विरोध नहीं है । तथा जैसे यह केवली भगवान परद्रव्यों की पर्यायों को उनके ज्ञानाकार मात्र से जानता हैं, तन्मय होकर नहीं जानते हैं, परन्तु निश्चय करके केवलज्ञान आदि गुणों का आधारभूत अपनी ही सिध्ध पर्याय को ही स्व संवेदन या स्वानुभव रुप से तन्मयी है, जातने हैं, तैसे निकट भव्य जीवको भी उचित है कि अन्य द्रव्यों का ज्ञान रखते हुए भी अपने शुद्ध आत्म द्रव्यकी सम्यक् श्रध्धान् ज्ञान तथा चारित्र रुप निश्चय रत्नत्रयमई अवस्था को ही सर्व तरह से तन्मय होकर जाने तथा अनुभव करे यह तात्पर्य है । [ गाथा-३७, पृष्ठ-१४७ ] भावार्थ- इस गाथा में आचार्यने फिर केवलज्ञान की अपूर्व महिमा को प्रगट किया है - द्रव्यों की पर्यायें सदाकाल हुआ करती हैं। वर्तमान समय संबंधी पर्यायो में सद्भूत तथा भूत और भावी पर्यायो कों असद्भूत कहते हैं । केवलज्ञान में तीन काल सम्बन्धी सर्व छः द्रव्यों की सर्व पर्याये एक साथ अलग अलग