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મંગલ જ્ઞાન દર્પણ ભાગ-૧
नयचक्र
आचार्य श्री माई धवल विरचित
- द्रव्य स्वभाव प्रकाशक - [.] आगे स्वजातिय पर्यायमें स्वजातिय पर्याय का आरोप करनेवाला असदभूत व्यवहार नयका स्वरूप कहते है
प्रतिबिम्बको देखकर यह वही पर्याय है ऐसा कहा जाता है। यह स्वजाति पर्याय में स्वजाति पर्यायका उपचार करनेवाला असदभूत व्यवहारनय है।
दर्पण भी पुद्गलकी पर्याय है और उसमें प्रतिबिम्बित मुख भी पुद्गलकी पर्याय है तथा जिस मुखका उसमें प्रतिबिम्ब पड़ रहा है यह मुख भी पुद्गलकी पर्याय है। दर्पणमें प्रतिबिम्बित मुखको देखकर यह कहना कि यह वही मुख है यह स्वजातिपर्यायमें स्वजातिपर्यायका आरोप करनेवाला असद्भूतव्यवहारनय हैं।
[पृष्ठ-११८] [] स्वसंवेदनके द्वारा गृहित वह आत्मा ध्यानमें प्रत्यक्ष रूपसे झलकता है। वह
श्रुतज्ञानके आधिन है और श्रुतज्ञान लक्ष्य और लक्षणसे होता है। यहाँ लक्ष्य आत्मा है वह आत्मा अपने ज्ञान, दर्शन आदि गुणों के साथ ध्येय ध्यान करने योग्य है। उस आत्माका लक्षण चेतना या उपलब्धि है वह चेतना दर्शन और ज्ञानरुप है।
[पृष्ठ-३९०, ३९१] [.] द्रव्य और पर्याय एक ही वस्तु है, प्रतिभास भेद होनेपर भी अभेद होने से, जो
प्रतिभास भेद होनेपर भी अभिन्न होता है वह एक ही वस्तु है जैसे रुपादि द्रव्य तथा दोनों का स्वभाव, परिणाम, संज्ञा, संख्या और प्रयोजन आदि भिन्न होने से दोनो में कथंचित भेद है, सर्वथा नहीं।
[पृष्ठ-२३] [.] अत: अनेकान्तात्मक वस्तु के कहने को स्याद्वाद कहते हैं। चूंकि श्रुतज्ञान में
भी वस्तु स्वरुप अनेकान्त रूपसे प्रतिभासित होता है अत: श्रुतज्ञान स्याद्वादरुप है।
[पशिशिष्ट पृष्ठ-२३४]
આત્મા ચિદાનંદ ધ્રુવ છે; તેના અવલંબનથી જે પર્યાય પ્રગટ થાય છે તે પણ ધ્રુવ છે. તેવી ને તેવી થતી રહે છે તે અપેક્ષાએ તેને ધ્રુવ કહ્યું છે. અને અધુવ પદાર્થોના અવલંબનથી અથવા પર્યાયના અવલંબનથી ઉત્પન્ન થયેલી પર્યાય અધુવ છે.
(મોક્ષમાર્ગ પ્રકાશક પ્રવચન હિન્દી ભાગ-૧ પેઈજ નં-૧૮૨, ૧૮૩).