________________
व्याख्यान ३:
:३३: बलादपि श्राद्धजनस्य दीयते,
सद्दर्शनं सर्वसुखैकजन्मभूः । व्यदीधपद्वीरजिनस्तदुद्यम, __ श्रीगौतमेनापि न किं कृषीवले ॥ १॥
भावार्थ:-श्रावक को बलात्कारपूर्वक भी सर्व सुखों का अद्वितीय कारणरूप समकित प्रदान किया जाता है। ऐसा उद्यम श्रीमहावीरस्वामीने श्रीगौतम गणधरद्वारा कृषीबल पर कराया था। जिसकी कथा इस प्रकार है:____एक समय जंगम (चलनेवाले) कल्पवृक्ष समान भगवान महावीरस्वामीने मार्ग में विहार करते हुए गौतम गणधर से कहा कि-हे वत्स ! जो ये समीप में ( थोडीसी दूरी पर ) ही कृपीबल दिखाई देता है उसको प्रतिबोध करने के लिये तू शीघ्रतया जा, क्योंकि उसको तेरे जानेसे बड़ा भारी लाभ होगा। यह सुनकर भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर वे उस कृषक के पास गये और बोले किहे भद्र ! तू कुशल तो है ? हे भाई ! ईस खेतीद्वारा अनेकों द्वीन्द्रिय आदि जीवों का वध कर क्यों वृथा पापों का उपार्जन करता है ? पापी कुटुम्ब के पोषण के लिये ऐसे कर्म करके तू तेरी आत्मा को अनर्थ में क्यों डालता है ? सुन