________________
व्याख्यान ५३ :
: ४७५ :
सुदर्शन मेरे साथ बलात्कार करने के लिये यहां आया है। यह सुन कर सिपाही उसे पकड़ कर राजा के पास ले गये। राजा ने सुदर्शन से पूछा परन्तु उसने रानी पर दया के भाव से कुछ नहीं कहा तो उसी को अपराधी समझ राजाने क्रोध से यह आज्ञा दी कि-इसको विडंबनापूर्वक सारे नगर में घूमा कर शूली पर चढ़ा कर मारडालों। सिपाही उसे उसी प्रकार ग्राम में फिराने लगे। उस समय सुदर्शन की स्त्री उसको उस दशा में देख कर शीघ्र ही गृहमन्दिर में जा अपने पति के कलंक रहित होने तक कायोत्सर्ग कर श्रीजिनेश्वर के सामने खड़ी हो गई। इधर राजसेवकोंने सुदर्शन को सारे नगर में घुमा कर ग्राम के बाहर ले जाकर शूली पर चढ़ाया परन्तु उसके शील के प्रभाव से वह शूली स्वर्णसिंहासन बन गई। फिर सिपाहियोंने उसका बध करने के लिये खड्ग का प्रहार करना आरंभ किया तो कंठ पर प्रहार करने पर कंठ का हार, मस्तक पर प्रहार करने पर मुकुट, कान पर प्रहार करने पर कुंडल और हाथ तथा पैरों पर प्रहार करने पर कड़े हो गये। इसे देख कर आश्चर्यचकित हो सिपाहियोंने यह सारा विस्मयकारक वृत्तान्त राजा से जाकर कहा जिसे सुन कर राजा शीघ्र ही वहां आ पहुंचा और सुदर्शन को सत्कारपूर्वक हाथी पर बिठा कर बड़े उत्सवपूर्वक अपने घर पर ले गया । यह वृत्तान्त सुन कर उसकी स्त्रीने भी अपना कायोत्सर्ग पूर्ण किया । फिर राजाने सुदर्शन से आग्रहपूर्वक सत्य