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व्याख्यान ६१ :
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फिर भी वे जिस देश में गये हैं उन देशों के लोगों को तो प्रत्यक्ष है, अतः उनकी सत्ता मानने में हमे बाधा नहीं है परन्तु जीवादिक को तो कोई भी कभी भी नहीं देख सकता है तो फिर कैसे माने कि वे जीवादिक हैं ? इसका यह उत्तर है कि - जैसे परदेश गये हुए देवदत्तादिक कइयों को प्रत्यक्ष होने में उनका होनापन माना जासकता है उसी प्रकार जीवादिक पदार्थ भी केवली को प्रत्यक्ष होने से उनका होनापन माना जा सकता है । अथवा परमाणु निरन्तर अप्रत्यक्ष है तो भी उनके ( परमाणु के ) कार्य से उनकी सत्ता (होनापन ) अनुमान से सिद्ध होती है, इसी प्रकार जीवादिक भी उनके कार्य से अनुमानद्वारा सिद्ध हो सकते हैं ।
इस प्रकार सिद्धान्त के वाक्यों की युक्तियों से सुबुद्धि प्रधानने राजा को प्रतिबोध किया । इस लिये राजा देशविरति (बारह व्रत ) अंगीकार कर श्रावक हुआ । फिर कुछ समय पश्चात् राजा तथा प्रधानने प्रव्रज्या ग्रहण की और अनुक्रम से मोक्षपद प्राप्त किया। कहा है किजियसत्तु पड़िबुद्धो, सुबुद्धिवयणेण उदयनायंमि । तद्दोवि समणसिंहा, सिद्धा इक्कारसंगधरा ॥१॥
भावार्थ:- सुबुद्धि मंत्री के वचनोंद्वारा जल के दृष्टान्त से जितशत्रु राजाने प्रतिबोध प्राप्त किया और उन दोनों