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श्री उपदेशप्रासाद भाषान्तर : वस्तु का पराभव हो जाने से वह (दूसरी) वस्तु दिखाई नहीं देती यह सातवां प्रकार है । जैसे सूर्यादिक के तेज से पराभव पामे ग्रह, नक्षत्र, आकाश में प्रकट होने पर भी दिखाई नहीं देते । इसी प्रकार अंधकार से पराभव पाया हुआ घड़ा दिखाई नहीं देता । तो क्या वह वस्तु नहीं है ? अवश्य है । तथा समान वस्तु के साथ मिल जाने से जो दिखाई न दे वह आठवां प्रकार है । जैसे किसी के मूंग के देर में एक मुट्ठी भर अपने मूंग डाले हो अथवा किसी के तिल के ढेर में अपने तिल डाले हो और हम उसे जानते हो फिर भी हमारे डाले हुए मुंग या तिल दिखाई नहीं देते (अलग नहीं किये जा सकते) इसी प्रकार जल में डाला हुआ लवण, मिश्री आदि अलग अलग दिखाई नहीं देते तो क्या इससे जल में लवण या मिश्री नहीं है ? अवश्य है । इस प्रकार आठ प्रकार से होनेवाली वस्तु की भी अप्राप्ति होती है । इस प्रकार पुद्गल तथा जीव आदि में अनेक स्वभाव विद्यमान हैं जो अनुक्रम से प्रकट होते हैं परन्तु उन सर्व स्वभावों की विप्रकर्षादिक कारणों के कारण प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा सर्वत्र जानना चाहिये ।
इसमें यदि किसी को शंका हो कि-ऊपर बतलाये हुए प्रकारों में देवदत्त आदि के देशांतर में जाने से दिखाई नहीं देते ऐसा जो कहा गया है। वे यद्यपि हमको अदृश्य हैं