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व्याख्यान ६१ :
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ये तीन भेद पहिले विप्रकर्ष (दूर) नामक प्रकार के हैं । दूसरा प्रकार अति समीपवाली वस्तु भी दिखाई नहीं देती । जैसे नैत्र में डाला हुआ काजल दिखाई नहीं देता । क्या वो नहीं हैं ? है जरुर । इन्द्रियों के घात होने से वस्तु नहीं दिखाई देती यह तीसरा प्रकार । जैसे अंध, बधिर आदि मनुष्य रूप, शब्द आदि को देख या सुन नहीं सकते । तो क्या इससे रूप, शब्द आदि नहीं है १ है जरुर । तथा मन के असावधानपन से वस्तु दिखाई नहीं देती । यह चोथा प्रकार है । जैसे अस्थिर चित्तवाला मनुष्य अपने पास होकर जानेवाले हाथी को भी नहीं देख सकता तो क्या हाथी वहां होकर नहीं गया ? गया है। तथा अतिसूक्ष्मपन से वस्तु दिखाई नहीं देती यह पांचवा प्रकार है । जैसे जाली में होकर अन्दर गिरते समय सूर्य की किरणों में स्थित त्रसरेणु ( रजकण ) तथा परमाणुद्रयणुक आदि तथा इसी प्रकार सूक्ष्म निगोद के जीव आदि दिखाई नहीं देते इससे
वे नहीं है ? हैं जरुर । तथा किसी वस्तु के आवरण से कोई वस्तु दिखाई न दे यह छट्ठा प्रकार है । जैसे भींत के अन्दर रहनेवाली वस्तु दिखाई नहीं देती तो क्या वह वस्तु नहीं है १ है अवश्य । चन्द्रमंडल का पिछला भाग दिखाई नहीं देता क्योंकि वह आगे के भाग से व्यवहित हुआ है । इसी प्रकार शास्त्र के सूक्ष्म अर्थ भी मति की मन्दता के कारण नहीं जाने जा सकते । तथा एक वस्तुद्वारा दूसरी